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Sunday, July 14, 2024

अनुभूति

 अनुभूति


बहुत दिनो बाद,

एकदम तरोताजा महसूस हुआ

वह उत्साह, उमंग !! अलग ही था सब कुछ!


तन मन में मानो नई उर्जा 

भर आई हो.


क्यों न होता ऐसा?

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कोठा जो साफ हुआ

इक था बचपन, बचपन के दिन भी क्या दिन थे — भाग 1 - 2

  इक था बचपन, बचपन के दिन भी क्या दिन थे — भाग १


पहले हमारे तीन तरह के कपडे हुआ करते थे, स्कूल के ..... घर के ..... बाहर के....

बाहर के कपडे तो दोनों भाईयों के एक ही जैसे, वो भी सिलवाए हुए, और दोनों बहनों के भी उसी प्रकार के....

मजाक में हमें बेंड वाले आगए कहते थे.

हमने बुरा माना नही ! जुर्रत भी भला कैसे करते. मान सकने की माली हालत भी तो नही थी हमारी....


लडकों के क्रू कट बाल, लडकियों की एक — बहुत हुआ तो दो चोटियां. 


पर आजकल तो .... तोबा तोबा....


पोते — पोतियों के उन तीन के सिवा भी, रात के नाईट ड्रेस, फाॅर्मल, इनफाॅर्मल, स्पोर्ट के अलग, डान्स के अलग, शादी — ब्याह के अलग.... ! अलग तो अलग जूते सॅंडल भी अलग....

उपर से मेंहदी, परफ्युम, लिपस्टिक लडकियों के मिजाज, लडकों के पर्फ्युम.


आज कल तो टेटू की महामारी सी लगी है मानो

सिर भी भला क्यों पीछे रहते? हम तो उन सब स्टाइलों के नाम तक नहीं जानते...

जिन्दगी तब आसान और सुकर लगती थी आज बहुत पेचिदा — काॅम्प्लिकेटेड सी लगती है

ऐसा हमें लगता होगा


पर,......


उन्हें ? आज कल की पीढी को नही.


वह सब उनकी समझ के परे है, फर्क सिफ यह है कि यह हमें लगता है...


एसे ही नही हमारी एक १२ / १३ साल की पोती ने तो हम लोगों पर उन्नीस वी सदी का लॅबल लगा दिया....


जनरेशन गेप भी अब बौना लगता है.

 


इक था बचपन.... भाग २


कहना अतिशयोक्ति ही होगी यदि कहा कि

बचपन में पैसा जरूर कम था,

रहता ही कहां था ?

फिर भी साला उस बचपन में दम था


आज भी याद है, मेले मे जाते समय 

चवन्नी मिलती थी, पर हम उसी में खुश रहते थे

मुंगफली या रेवडी तो मिला करती ही थी!


पर आजकल तो....

 

पित्झा, बर्गर के चोंचले,

हाॅटलों में जन्मदिन की पार्टियां, रिटर्न गिफ्ट...

हम उस स्थिती में खुश थे, आजकल बच्चे इस हाल में खुश हैं

समय समय पर सोच बदलती है

हम जिस हाल से गुजरे, उसी से आज की पीढी  गुजरे ??

हमारा रहन सहन भी तो गुजरे कल सा नही है

फिर बच्चे क्पों वंचित रहें?


बदलते समय में " बदलाव " समय की मांग है


दोनों अंतराल अपनी अपनी जगह ठीक !!


हमारे बचपन में गिल्ली दंडा, दामदडी, पिट्टू, कंचे, लट्टु , पकडम पकडाई जैसे अनगिनित खेल होते थे, बारिश के अलग, गर्मी की छुट्टियों के अलग....


पर आज कल....

घर घर खिलौनों की भरमार, विडिओ गेम्स , मोबाईल गेम्स बस ! चार दिवारी में खेल सिकुड सा गया है खेल ।।

तब जरूर लगता है कि हम कितने भाग्यशाली थे

सच ही तब के बचपन में पैसे जरूर कम थे


पर...


यारों उस बचपन में दम था