Born Free

Born Free
Live Life Your Way

Followers

Friday, December 5, 2008

मेरे डायरी के पन्नो से - एक आव्हाहन

दस लोग , नही , दस मानसिक रोगी, या यूँ कहें दस आतंकवादी १०० करोड़ लोगों के दिलों को छलनी करते हैं। हश्र तो यह है की करीब २०० लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है , हमें समझाने के लिए ॥ कहते हैं - घटनाएँ बदलाव लाती हैं , मृत्यु भी हमें दुसरे तरीके से सोचने पर मजबूर करती है , पर क्या " बदलाव " और " सोच " स्थायी है ?? शायद नही । । क्योंकि यादाश्त भी " क्षणिक " होती है , कोई नई घटना - चाहे दुखद या सुखद हो , स्मृति पटल के पन्नो में धीरे धीरे दबती जाती है , खो सी जाती है । और , फिर से हम वर्तमान में जीने लगते हैं। तभी तो कहते हैं - समय अपने आप जख्म भरता है । पर जरा सोचिये । । जो कुछ २६ / ११ को मुंबई में हुआ , उसने हमारी सोयी चेतना को जगा दिया , मिडिया ने हर पल , अविरत एक नई सनसनी खेज ख़बर से, हमें हिला कर रख दिया , और हमें सोचने पर मजबूर किया - और कितने दिन ?? अब बहुत हुआ । और कितने दिन हम बेखबर से, सहिष्णुता की आड़ में, कब तक हम हाथ पर हाथ रख बैठे रहेंगे ?? यही सोच कर इस आम आदमी ने पहली बार एक देशव्यापी आन्दोलन छेडा । वह भी बिना किसी नेता के या नेतृत्व के ॥ उसने एक बदलाव की आवाज़ उठाई । कई मंत्री बदले गए , पर क्या हमेशा के लिए ?? नही शायद । क्योंकि ये सब लोग कोंग्रेस घास के मानिंद हैं , उखाड़ फेंको तो भी हर मौसम में उग आते हैं । वे फिर सत्ता में आयेंगे या इर्द गिर्द रहेंगे । इसीलिए हमें इस आन्दोलन को थमने नही देना है, हमें अब सर्वव्यापी बदलाव की जरुरत है , राजनीती में , आतंरिक और बाह्य सुरक्षा में, समाज में फैले भ्रष्टाचार में, फ़ैली हर " सब ठीक है " की प्रवृत्ति में , अपनी " सोच " में , अपने " मूल्यों " में । और यह तभी होगा जब, आज का नौजवान जागरूक होगा , जैसे गत सप्ताह हुआ । जब समाज के हर तपके से नौजवान हर क्षेत्र में सक्रिय भाग लेगा । कब तक हमारी नई पीढी हमारी नाकामियों देखेगा ?? देश को बटते हुए, टूटते हुए देखता रहेगा ?? छोड़ो यारों , किसी का इंतज़ार , किसी नेता का , नेतृत्व का इंतज़ार । छोड़ो अपना और अपने परिवार तक सीमित संकुचित विचार, अरे जवानो, हमने तो यूँही इंतज़ार में आज़ादी के ६० वर्ष बरबाद किए , सोचते रहे " सब कुछ ठीक है "। पर अब आप को सोचना है , क्या आप को उसी मार्ग पर चलना है , या फिर एक नया इतिहास रचना है । आनंद गानू

No comments: