कुछ महीनों पाहिले ईराक में जनाब बुश पर एक पत्रकार ने जूता क्या फेंका अब सब जगह इस प्रयास की जैसे एक होड़ सी शुरू हो गई है। भारत जैसे देश भी , जहाँ सदियों से " पहले आप , पहले आप " की लखनवी परम्परा रही हो , इस में पीछे नही रहे । इसे कहते हैं २१ वी सदी में देश का सही मायनों में पदार्पण । अब तो हम गर्व से कह सकते हैं " हम किसी से कम नही " ।
दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल ने गृह मंत्री श्री चिदाम्बरम पर अपनी कलम की बजाय जूता चलाना ज्यादा उचित समझा की नही यह तो वही जाने , उसकी वजह ( कॉज़ ) भी वही जाने , पर उसका परिणाम ( इफ्फेक्ट ) शायद दूरगामी हो इसमे मुझे कोई संशय नही है ।
अब जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार का चुनावी भविष्य " बीच भंवर में गुड गुड गोते खाए " जैसा हो गया है।
इसे कहते हैं " जूते के साइड इफ्फेक्ट " ।
पहले तो सिर्फ़ विधान सभाओं और लोक सभा या राज्य सभा में कुर्सियां फ़ेंक कर राजनैतिक अपनी व्यथा या क्रोध व्यक्त करते थे । तो आम आदमी ने उनसे सीख ले कर दो कदम आगे बढ़ना ही मुनासिब समझा । आखिर पत्रकार भी तो आम आदमी ही है । मुझे तो यह भी लगता है की अब वह दिन दूर नही जब हम तुम जैसे व्यक्ति भी अपनी व्यथा या क्रोध व्यक्त करने के लिए , हर जगह अपनी जबान या कलम छोड़ कर जूतों का ही प्रयोग करें।
कहीं लडाई हो - चलाओ जूते, ऑफिस में सालाना बढ़त से आप खुश न हो - चलाओ जूते । सरकारी दफ्तरों में वक्त पर आप का काम न हो - चलाओ जूते। परीक्षा के नतीजों से आप खुश न हो - चलाओ जूते ।
शायद इस दिन का भगवान् को पूर्वानुमान होगा, इसी लिए उसने शुरुवात से ही आदिमानव को रचते समय दो दो पैर और हाथ दिए । उसने भी सोचा समय पर शायद एक जूता और एक हाथ कम न पड़ें । भगवान् !! आप अन्तर्यामी हो । आप की लीला अपरम्पार है ।
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