अप्रेल के अंत में कर्णिकार ( बहावा ) के दरख्तों पर
सुनहरे फूलों की लडियां झूलने लगी,
और 1 - 2 महिनों में ही बारिश के आने के संकेत मिले.
बेताल टेकडी पर मोर, कोयल समर्थन में गाने लगे,
गर्मी भी अपने ऊफान पर थी, कहर बरपा रही थी !
मई के महिने ने दस्तक ही दी थी कि बजार में चहुं ओर आमों और कटहलों की महक फैल गई,
टपोरे टपोरे जामुन भी दिखने लगे गोया टोकरियों में बडे बडे काले मोती सजाए हो !
फिर आखिर बारिश आ ही गई !
इस बार ठान कर, मैं भी
अपनी बाहरी बूढापे की त्वचा लांघ कर
मानो, मन से बच्चा बन गया !
सच ही उम्र सिर्फ अंक है,
मानो तो बुजुर्ग हो, मगर ठान लो तो....
बहरहाल मैं ठान कर बच्चा बना,
पोते — पोती के साथ जमकर
पहली फुहार में भीगा, मस्ती में उनके साथ नाचा.
अफसोस हुआ जब
हफ्ते — दस दिन रही बारिश,
और फिर गुम हो गई
पर इतने ही दिनों में
धरा हरी भरी, नई नवेली दुल्हन जैसी सज गई
बारिश रूपी प्रितम की बाट जोती.
और, उसके इंतजार में सजी ही रही !!
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