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Monday, May 5, 2014

इक्क्सिवी सदीं क़ी गुलामी

इक्क्सिवी सदीं क़ी गुलामी 

इक्कीसीवी सदी मे, मैं एक गुलाम हूँ ! अपने .कम्प्यू.टर का, अपने मोबाइल का, अपने आय पेड़ का ! मेरी दुनिया इनमे और इनके इर्द गिर्द ही रहती है ! समाज से, अपने घर वालों से, अपने परिवार से, अपने मित्रों से कट सा गया हूँ ! मैं ही क्यों, हम सब इसी तरह की गुलामी मे कैद हैँ !

मेरी सुबह मोबाइल के अलार्म से शुरू होती है, या फिर उस पर आए किसी कॉल या मसेज से ! मैं हड़बड़ाकर उठता हूँ , जवाब देता हूँ और फिर सो जाता हूँ , या फिर उठ कर फारिक हो कर घूमने निकलता हूँ ! अब मोबाइल का हेड फोन मेरा साथी होते हैं ! मैं दुनिया से कटा हुआ ही होता हूँ ! मैं अपने ही मे मग्न, दुनिया से, अपने इर्द गिर्द से गुजरते लोगों से कटा हुआ ! किसी से गुड मॉर्निंग  नही, किसी को देख कर मुस्कुराना नही, किसी की भी आँखों से कोई संपर्क नही!

वापिस आने पर मा से, बीवी से, बच्चों  से बातें करने की फ़ुर्सत ही नही, या मूड ही नही ! अख़बार या टीवी के न्यूज चेनेल मेरे लिए अधिक महत्व पूर्ण जो होते हैं ! फिर नहाना धोना, तैयार होना, किसी तरह नाश्ता पेट मे ठुसना और दफ़्तर के लिए निकलना ! रास्ते मे आई पेड़ या लॅपटॉप पर फेस बुक / ट्विट्रर या फिर मोबाइल पर वॉटस एप! लो जी फिर हो गये सोशियल मीडीया से कन्नेक्ट ! आज कल तो मूहसे भी बात् चित कम हो गयी है ! जब जिसको , जैसा समय मिले मेसेज दो काम हो गया ! 

ओफ्फिस मे थोडा सा इधर उधर काम कर लिया, फिर जुड़ जाओ लोगों से, अपने मित्रों से, यू ट्यूब से ! वहाँ भी आज कल इसके सिवा किसी प्रकार का संपर्क नही रहता ! यह भी तो एक प्रकार से दुनिया से कटापन ही है ! दुनिया से जुड़े हो कर भी कटे हुए , दुनिया से अलग !

घर वापिस आने के बाद, हम सब एक साथ हो कर भी एक दूसरे से अलग , कटे हुए ! कोई टी वी मे मॅग्ना, तो कोई अपने मोबाइल मे, तो कोई अपने लॅपटॉप मे ! सब दुनिया से अपनी तरह अपने माइनो मे अपने अपने माप दंड से जुड़े हुए पर फिर भी  एक दूसरे से कटे हुए ! और मज़ा तो देखो, दुनिया से भी कहने भर के लिए जुड़े हुए ! मेसेज, ट्विटर या फेस बुक पर जुड़ना भी कोई जुड़ना है ? पर किसी को इसके सिवा समय भी कहाँ है ? 


फिर वोही सब रात को  दोहराया जाता है ! अगले दिन वही दिनचर्या फिर शुरू !

कहाँ गया वो गप्पें, चाय की चुस्कियों पर गप्पें, एक साथ घूमना, खेलना वगेरा वगेरा ? मित्रों से मिलना , मैदानो पर वोल्ली बाल, क्रिकेट, या हॉकी खेलना, कब्बड़ी / दाम दडी खेलना, गिल्ल्ली डंडा खेलना , घंटों तालाब मे तैरना, वो गर्मियों की छुट्टियों मे, नीम के पेड़ पर चढ़ कर निम्बोली खाना ! 

आज कल तो बड़े टी वी देखते हैं और बच्चें  लॅपटॉप पर गेम खेलते है ! सब अपनी अपनी दुनिया मे मग्न, पर एक दूसरे से कटे हुए ! मेरे पास उनके लिये  और उनकी पास मेरे लिये  कोई समय नही है !

ये क्या हो रहा है भाई ??

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