मुझे आज भी याद है
पिलानी की छोटी कॉलोनी के दिन.
गर्मियो मे स्कूल से आने के बाद दुपहर की धूप से बचने के लिये घरके नीम के पेड पर बैठ कर पढ्ना . शाम को गली मे हॉकी , वोल्लीबाल, पिट्टू या दाम दडी खेलना या फिर ग्राउंड मे बैसबाल या क्रिकेट खेलना .
मुझे आज भी याद है
सुबह सुबह लोटा ले कर सामुहिक दिनचर्या के लिये जाना, पानी की कमी के दिनो मे सफाई के लिये पत्थरो का इस्तमाल करना.
मुझे आज भी याद है
गर्मी की छुट्टी मे दुपहर को ताश कुटना , शिवगंगा मे सुबह शाम घंटो तैरना और आने के बाद जम के खाना .
मुझे आज भी याद है
किसी किसी साल बंबई का सफर. कन्सेशन के टिकेट ले कर चिडावा - सवाई माधोपुर मीटर गेज की गाडी का सफर, वहा स्टेशन पर का लजवाब खाना और फिर जनता एक्ष्प्रेस से बंबई तक का सफर. पुरा सफर कोयले के इंजन वाली गाडियो से होने की वजह से हम सब के मुह काले हो जाते थे. पुरे सफर को करीब ३६ घंटे लगने से, बंबई पहुच कर भी सिर चकाराता था.
वो भी मुझे आज भी याद है
फिर थोडे दिनों बाद एस टी से कोंकण का सफर. सुबह निकल कर देर शाम माखजन , पसीने से तर हो कर प हुं च ना. बीच मे महाड स्टेशन पर दुपहर का खाना. पहुच ने तक सिर से पैरो तक लाल मिट्टी से सन जाना
मुझे आज भी याद है
आज सब कु छ बदल गया है. पर यादे अभी भी तरो ताजा हैं .
पिलानी की छोटी कॉलोनी के दिन.
गर्मियो मे स्कूल से आने के बाद दुपहर की धूप से बचने के लिये घरके नीम के पेड पर बैठ कर पढ्ना . शाम को गली मे हॉकी , वोल्लीबाल, पिट्टू या दाम दडी खेलना या फिर ग्राउंड मे बैसबाल या क्रिकेट खेलना .
मुझे आज भी याद है
सुबह सुबह लोटा ले कर सामुहिक दिनचर्या के लिये जाना, पानी की कमी के दिनो मे सफाई के लिये पत्थरो का इस्तमाल करना.
मुझे आज भी याद है
गर्मी की छुट्टी मे दुपहर को ताश कुटना , शिवगंगा मे सुबह शाम घंटो तैरना और आने के बाद जम के खाना .
मुझे आज भी याद है
किसी किसी साल बंबई का सफर. कन्सेशन के टिकेट ले कर चिडावा - सवाई माधोपुर मीटर गेज की गाडी का सफर, वहा स्टेशन पर का लजवाब खाना और फिर जनता एक्ष्प्रेस से बंबई तक का सफर. पुरा सफर कोयले के इंजन वाली गाडियो से होने की वजह से हम सब के मुह काले हो जाते थे. पुरे सफर को करीब ३६ घंटे लगने से, बंबई पहुच कर भी सिर चकाराता था.
वो भी मुझे आज भी याद है
फिर थोडे दिनों बाद एस टी से कोंकण का सफर. सुबह निकल कर देर शाम माखजन , पसीने से तर हो कर प हुं च ना. बीच मे महाड स्टेशन पर दुपहर का खाना. पहुच ने तक सिर से पैरो तक लाल मिट्टी से सन जाना
मुझे आज भी याद है
आज सब कु छ बदल गया है. पर यादे अभी भी तरो ताजा हैं .
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