कुछ वहशी लोगों ने , समाज के कलंकों ने ,
उस लाचार अबला को
अपनी हवस का शिकार बनाया ,
और कुछ ही क्षणों में ,
वह अपनी पहचान खो बैठी !
कल तक,
उसकी अपनी एक दुनिया थी,
मन में स्वप्नों के राजहंस
चिल - बिल करते थे , चहकते थे ,
उज्वल भविष्य की आस थी , उसे भी ,
अपने ढंग से जीने की लालसा थी , उसकी ,
और अब ,
एक ही वार में मानो , वह
इन सब से कट सी गयी,
अपना अस्तित्व ही खो बैठी मानो !
अभी वह अपनी मौत से झुंज़ रही है ,
कहती है ,
" मॉम , मैं जीना चाहती हूँ " !
शायद वह इस प्रयास में सफल हो भी जाए
सब की प्राथनाएं भी यही हैं ,
उम्मीद भी है सभी को , उसे भी !
उसकी जीवन रेखा शायद लम्बी भी हो ,
पर,
भविष्य की बाकी रेखाएं मानो
अभी तो आकर सिमट सी गयी हैं ,
धूमिल सी हो गयी हैं, मिट सी गयी हैं !
डर तो यह है कि , अब
पल - पल जिंदगी भर शायद
वह इस हादसे को अपने
दिलो - दिमाग से निकाल न पाएगी !
क्या होगा उसका उर्वरित जीवन?
क्या वह फिर मुस्कुराएगी ? खिलखिलाएगी ?
क्या होंगे उसके नए सामजिक समीकरण ?
कौन उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा ?
क्या कोई उसे निष्कलंकित मान अपनाएगा ?
या फिर,
वह रहेगी , जियेगी एक - अनामिका !!
उस लाचार अबला को
अपनी हवस का शिकार बनाया ,
और कुछ ही क्षणों में ,
वह अपनी पहचान खो बैठी !
कल तक,
उसकी अपनी एक दुनिया थी,
मन में स्वप्नों के राजहंस
चिल - बिल करते थे , चहकते थे ,
उज्वल भविष्य की आस थी , उसे भी ,
अपने ढंग से जीने की लालसा थी , उसकी ,
और अब ,
एक ही वार में मानो , वह
इन सब से कट सी गयी,
अपना अस्तित्व ही खो बैठी मानो !
अभी वह अपनी मौत से झुंज़ रही है ,
कहती है ,
" मॉम , मैं जीना चाहती हूँ " !
शायद वह इस प्रयास में सफल हो भी जाए
सब की प्राथनाएं भी यही हैं ,
उम्मीद भी है सभी को , उसे भी !
उसकी जीवन रेखा शायद लम्बी भी हो ,
पर,
भविष्य की बाकी रेखाएं मानो
अभी तो आकर सिमट सी गयी हैं ,
धूमिल सी हो गयी हैं, मिट सी गयी हैं !
डर तो यह है कि , अब
पल - पल जिंदगी भर शायद
वह इस हादसे को अपने
दिलो - दिमाग से निकाल न पाएगी !
क्या होगा उसका उर्वरित जीवन?
क्या वह फिर मुस्कुराएगी ? खिलखिलाएगी ?
क्या होंगे उसके नए सामजिक समीकरण ?
कौन उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाएगा ?
क्या कोई उसे निष्कलंकित मान अपनाएगा ?
या फिर,
वह रहेगी , जियेगी एक - अनामिका !!
1 comment:
Thought provoking
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