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Saturday, September 20, 2008

मोहन चंद्र शर्मा की कुर्बानी

कल दिल्ली में हुई मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गए, एक पकड़ा गया और दो फरार होने में कामयाब हुए । पर सब से बड़ा दुःख तो इस बात का है की दिल्ली पुलिस का एक कर्मठ कर्मचारी भी इस मुठभेड़ में शहीद हुआ । जांबाज पुलिस इंसपेक्टर श्री मोहन चंद्र शर्मा ने स्वंयं की समस्याओं को नजरअंदाज कर देशहीत में ख़ुद को झोंक देना ज्यादा मुनासिब समझा । उनका पुत्र डेंगू की चपेट में अस्पताल में भरती था । वे स्वयं भी तीन दिनों से वहीं थे , पर जैसे ही उन्हें इस मामले की ख़बर दी गई , वे उसी समय मौकाए वारदात पहुँच गए । उन्होंने सुरक्षा कवच भी नही पहना था । फिर भी सच्चे लीडर की तरह वे पहले अन्दर घुसे । उन्होंने चार गोलिया झेली । अस्पताल में उन्होंने आखिरी साँस ली । पर अचरज कि बात है कि वहां की मुस्लिम बस्ती वालों ने सड़कों पर आकर नारे बाजी की और पुलिस पर झूठी मुठभेड़ का आरोप लगाया । और इसमें मीडिया ने भी साथ दिया । यह एक शर्मनाक वाक़या था । सोचने की बात है कि यदि इस मुठभेड़ में किसी पुलिसकर्मी की मौत होती है , उस मकान में ऐ के ४७ और पिसौल मिलती है , कुछ गोला बारूद और कार्तुसें मिलती हैं तो कैसे यह एक मनघडंत और झूठी मुठभेड़ हो सकती है । यह कोई पहली बार नहीं हुआ है । हर इस तरह कि घटना के बाद इस समुदाय के लोग , उनके रिश्ते दार और कुछ राजनीतक दलों के लीडर पुलिस , या फौज पर इस तरह के आरोप लगाने से नहीं चुकती । मीडिया भी इसे भुनाती है । मानवाधिकार ( ह्यूमन राइट्स ) का वास्ता दिया जाता है , तीस्ता सीतलवाड़ जैसे छिछले और ओछी मानसिकता के लोग ऐसे कदमों के विरोध में एडी छोटी का जोर लगा कर विरोध में केस कर के रोडे अटकाते हैं । मीडिया भी इन बातों को हवा देते नहीं थमती । अब समय आगया है , यदि हम अमरीका या इंग्लॅण्ड का उदहारण सामने रखें और इस समस्या से छुटकारा पाने कि ख्वाहिश रखते हैं तो हमें भी आतंकवाद के खिलाफ शुन्य सहिष्णुता अपनाने की जरुरत है । साथ ही साथ हमें पुलिस और फौज को राजनीती के कंट्रोल से हटाना पड़ेगा। जैसा कि ऐ पी एस गिल , पार्थसारथी और परेरा ने कल कहा कि पुलिस और फौज सक्षम हैं पर उन्हें स्वतंत्रता देने कि सख्त जरुरत है । ऐसे समय में जब कोई विपदा एक राष्ट्रीय रूप लेती है , सभी राजनैतिक दलों को पक्षीय राजनीती से उठ कर , एक जुट हो कर समस्या से लड़ने कि जरूरत है । वोट बैंक कि राजनीती ऐसे समय जो भी दल करे उसका सामूहिक तिरस्कार करने का वक्त आगया है । मीडिया को भी संयम से काम करने का वक्त आ गया है । टी आर पी , या वन अप् मन शिप का लालच छोड़ना होगा । मीडिया को भी लाइव कवरेज देने से दूर रहना चाहिए । उन्हें सिर्फ खबर देनी चाहिए । लोगों का , बस्ती वालों का , रिश्तेदारों का क्या मत है , या फिर कौन गुन्हाह्गार है , कौन जिम्मदार है इत्यादि बातों को ऐसे समय उछाल कर मामले को और उलझाना नहीं चाहिए । इस के लिए यदि कोई प्रसार माध्यमों पर पाबन्दी का कानून लाने की जरूरत है तो सरकार को वह भी करना चाहिए । इसी तरह जैसा कि किरण बेदी ने कहा , जनता की साझेदारी और पुलिस को मदत की भी जरूरत है । तभी पुलिस के हाथ मजबूत होंगे और उन्हें सही वक्त पर जानकारी मिलेगी । जनता को भी अब चौकन्ना रहने का वक्त आ गया है । तभी ऐसे लोगों की हरकतों को हम सब और पुलिस काबू में रख पाएगी . तभी सही मायनों में हम इस ज्वलंत समस्या से लड़ पायेंगे । और वही सफलता ही सच्चे अर्थों में मोहन चन्द्र शर्मा को श्रधान्जली होगी । तभी उसकी और उसके जैसे लोगों की ( जो आम जनता कि रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं ) कुर्बानी सार्थक होगी ।

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