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Monday, August 25, 2008

जरा सोचिये

इस बार ओलिम्पिक्स में एक सराहनीय शुरुवात हुई है। एक नया जोश, एक नई प्यास हमारे खिलाड़ियों में नज़र आई। शुरुवात में अपने मुक्के बाज़ मुजे कुछ बड़बोले लगे पर फिर एहसास हुआ कि शायद ये एक तरीका है अपना जोश टिकाये रखने का। उन बयानों में मुझे फिर उनकी भूख नज़र आई। मेरी सोच में बदलाव जरूरी था। मुझे लगता है इसी तरह हर भारतीय को अपने खिलाड़ियों की सिर्फ़ आलोचना, निंदा करना या उनके दोष निकलना छोड़ देना चाहिए। मंजूर है कि चीन ने सिर्फ़ पॉँच ओलिम्पिक्स में स्वर्ण पदों कि तालिका में अग्रगण्य स्थान हासिल किया है। माना कि जमैका , कोरिया, क्यूबा जैसे देश छोटे होते हुए भी अपने से मीलों आगे हैं। यह भी माना कि अपने किसी भी खिलाड़ी में फेल्प्स या बोल्ट जैसी प्रतिभा नही है , पर लगन कि कमी है यह तो मैं नही मान सकता। तो क्या अपनी ताकतें है और क्या अपनी कमजोरियां हैं , इसका आंकलन करना जरूरी है। मेरी राय कुछ ऐसी है - ताकतें: अपनी आबादी, अपनी लगन, अपना जज्बा कमजोरियां: अच्छी सुविधाएँ, पैसा , अच्छे कोच यदि ध्यान से गौर करें तो सबसे बड़ी कमजोरी सिर्फ़ एक ही है, और वह है पैसा। बी सी सी आई ने एक अच्छी शुरुवात कि है। पहले सालाना २५ करोड़ कि सहायता मंजूर कि थी, पर खेल मंत्री श्री गिल के अनुरोध पर अब ५० करोड़ कर दी है। श्री शरद पवार कि यही पहल, आने वाले दिनों में एक मील का पत्थर साबीत होगी। मुझे बहुत खुशी होगी यदि अपने अमीर क्रिकेटरों ने भी यदि ऐसा ही कदम उठाया तो। इसी तरह यदि बोलीवुड, टॉलीवुड, या कोलीवुड के शहजादे कुछ आगे आयें, कुछ कोर्पोरेट जगत के लोग , मसलन मित्तल, अम्बानी बंधू, बिरला समूह, टाटा आदि अपने मुनाफे कि कुछ राशी इस में लगायें, और यदि अपने राजनीतिज्ञ या बड़े छोटे व्यापारी भी अपने काले धन को इस नेक काम में अनुदान कर ,सफ़ेद धन में बदलें , और यदि अपने देश के कुछ मंदिरों ( तिरुपति, साईं बाबा, सिद्धि विनायक इत्यादि ) के चालक दान कि कुछ राशी इस काम के लिए दें ,तो क्या मुमकिन नही है?? मेरे विचार से तो यह सब पैसों का ही खेल है। यदि चीन जैसा देश ४३ बिल्लियन डॉलर खेल आयोजन में लगा सकता है, और यदि ऎसी ही कुछ रकम अपने खिलाड़ियों में लगा सकता है, तो क्या यह अपने लिए मुमकिन नही है?? यदि पैसा हो और यदि खेल संचालक राजनीती छोडें तो सुविधाएँ या कोच जुटाना कोई मुश्किल काम नही होगा.

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