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Tuesday, August 26, 2008
जरा सोचिये
सिंगूर में जो कुछ हो रहा है उस के लिए कौन जिम्मेदार है? बुद्धदेव, ममता, या फिर टाटा? मैं नही मानता की इस में टाटा का कुछ हाथ है। उन्हें तो यह संयंत्र कहीं ना कहीं लगाना था वह यदि सिंगुर में नही आता तो कहीं और होता। मैं ममता को भी दोषी नही मानता क्योंकि वह समस्या पैदा होने के बाद ही इस समस्या का हल ढूँढ रही है। किसानों की समस्या। भले ही उसी बहाने उसे अब इस का राजनैतिक लाभ हो। या यूं कहें कि, उसके राजनैतिक लाभ के बहाने किसानों की समस्या का हल निकले। तो मेरे हिस्साब से बुद्धदेवजी ही इस समस्या की असली जड़ हैं।
वैसे ऎसी समस्स्यायें ( जिनेरिक ) वर्गीय ही होती हैं। वें किसी भी राज्य में पैदा हो सकती हैं। सत्ताधारी लोग पूरा गृहकार्य किए बिना, जल्दबाजी और आननफानन में निर्णय लेते हैं और उसका खामियाना आम जनता को भुगतना पड़ता है, या फिर उद्योगपतियों को भुगतना पड़ता है। चाहे वह बाँध निर्माण या संयंत्र निर्माण, या सड़क निर्माण से, या फिर नदियों के जोड़ने से जुडी समस्या हो। इन सब कामों के लिए जमीन लेने से ले कर गाओं के विस्थापन की, या खेतीहर मजदूरों के जमीन की समस्स्यायें हो सकती हैं, पर्यावरण से जुडी हो सकती हैं। माना कि उन्नति के लिए , मूलभूत सुविधाओं के लिए यह सब जरूरी है।
पर हमारा देश एक गणतंत्र है। हम चीन जैसा नही कर सकते। हमारे देश में मजबूत न्यायपालिका है, हम सब को संवैधानिक अधिकार हैं कि हम अपनी समस्स्याओं के निवारण के आन्दोलन करें, आवाज़ उठायें, या फिर न्यायपालिका का आधार ले सकें। तो फिर क्यों नही इन सब बातों का आंकलन पहले ही किया जाता? क्यों नही एक विशेषज्ञों का एक मंडल हो जो किसी भी ऎसी परियोजना के हर पहलू पर विचार कर समयबद्ध , अपनी सिफारिश दे। इस मंडल में प्रौद्योग विग्न्य , वैज्ञानिक, न्यायाधीश, उद्योगपति, परियोजना से जुड़े हुए पंचायत के लोग, पर्यावरण विशेषज्ञ , एन जी ओस इत्यादि हों। इस मंडल की सिफारिश सराकर पर बाध्य हो। सर्वोच्च न्यायालय में उनकी सिफारिश को मान्यता हो।
यदि ऐसा हुआ तो कभी भी कोई अड़चने नही आएँगी। हाँ काम शुरू करने में साल छे महीनो का विलंब हो सकता है पर अंततः वही गुणकारी सिद्ध होगा। क्योंकि यह समय व्यर्थ नही होगा। कहते हैं ना॥ " शार्पन दी एक्स बिफोर स्टार्टिंग त्तू कट दी ट्री ॥ "
सिर्फ़ ध्यान रखना होगा की ऐसे मंडल के गठन में और ऐसे मंडल का राजनीतिकरण न हो। अच्छा तो हो की यह मंडल एक स्वायत्त संस्था हो, और इसके सदस्यों का चुनाव या गठन इस मंडल के अध्यक्ष पर छोड़ा जाए। सर्वोच्चा न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश इस मंडल का अध्यक्ष्य हो। अध्यक्ष का कार्य काल ५ वर्षों का और बाक़ी सदस्यों का ३ वर्षों का हो।
ऐसा यदि , और जब कभी होगा, तो हर कार्य सुचारू रूप से चलेगा।
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