I am an engineer by profession and an artist at heart. Now I have started my own consultancy firm after retirement. It is only to keep me engaged. Money is not the intention, though it is welcome as it fills my pockets occassionally
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Saturday, July 19, 2008
जरा सोचिये
परसों मैं आगरा स्टेशन पर अपनी गाड़ी आने का इंतज़ार कर रहा था । चिंघाड़ भोंपू पर एक महिला चिल्लाई " यात्री ध्यान दें, हैदराबाद जाने वाली ऐ पी एक्सप्रेस करीब आधे घंटे देरी से चल रही है , असुविधा के लिए खेद है । ऐसा उसने दो या तीन दफः कहा । हर बार मुजे लगा कि उसे खेद देरी की बजाय इस बात का होना चाहिए कि यात्रियों को उतनी देर ज्यादा टट्टी - पिशाब कि बदबू सुंघनी पड़ती है । " मुजे इस बात का भी अचरज है की लोगों को स्टेशन आते ही क्यों लघु - या - दीर्घ शंकाएँ होती हैं । शायद हिलती गाडी में अन्दर और बाहर चल रही हल चल उन्हें अस्वस्थ करती हों .
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