I am an engineer by profession and an artist at heart. Now I have started my own consultancy firm after retirement. It is only to keep me engaged. Money is not the intention, though it is welcome as it fills my pockets occassionally
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Saturday, July 19, 2008
एक स्वप्न
परसों काफी देर तक आगरा स्टेशन पर गाड़ी का इंतजार किया और आस पड़ोस के प्रदूषित वातावरण में फंसा मैं और कर भी क्या सकता था, लाचार और मजबूर सिर्फ़ अपनी तकदीर को कोस कर चुप रहा । आखीर कार , गाडी आयी और मैं स्थानापन्न हुआ। फेफडों में अभी भी वही प्रदूषित हवाएं घूम रही थीं। ऐ सी डिब्बे में करवटें बदलते बदलते कब नींद के आगोश में चला गया , पता भी नही चला। कुछ देर बाद श्री लालू प्रसाद जी दिखे। मैंने कहा " नमस्कार मान्यवर मंत्री महोदय। उन्होंने अभिवादन स्वीकारते हुए, मुहं में के पान की जुगाली करते हुए , और कुछ न बोल कर ही सिर्र्फ गर्दन हिलायी। मैंने कहा श्रीमान अगर गुस्सा न हों तो कुछ अर्ज करूँ। फिर से उनकी गर्दन हिली और गो - अहेअड का सिग्नल मिला। रेल मंत्री भी आदतन सिग्नल देते हैं। मैंने कहा " सर, ये प्लेटफोर्म पर की गन्दगी का कुछ किजीये ना, मैं एक इंजिनियर हूँ , एक सुzआव देना चाहूँगा। फिर से सिग्नल मिला । मैंने कहा हर डिब्बे के सौचालय के नीचे एक स्वचालित बर्तन क्यों नही लगाते जिसका ढक्कन अपने आप स्टेशन दूर निकल जाने पर खुले और सब इक्कठी हुई टट्टी - पिशाब बाहर निकल जाए। मंत्री जी ने थोड़ा सोचा , पींक थूकी और गुस्से से कहा" हट , ये हमरा काम है क्या, हर किसी की टट्टी - पिशाब साफ़ करने का? हमरा काम है रेल चलने का, रेल को मुनाफा में लाने का। आइसे ही नही हम को हारवार्ड उनीव्वार्सिती में बुलाते , सब हमे अप्रिसिअत करते। भारत की भी सभी मैनेजमेंट की पाठशालाये रेलवे के टर्न अरौंद स्टोरी को केस स्टडी बनाये हैं । जाओ हटो और स्वास्थ्य मंत्रालय में शिकायत दर्ज करो। या फिर पी एम् ओ में शिकायत दर्ज कराओ । इन्हे वैसे भी कुछ काम नही रहता । पर सुन लो । वहाँ भी कोई क्या कर पायेगा । देश की इतनी आबादी है ये तो होना ही है। इसमे क्या है दो चार दिन की तो बात है सब कुछ सूख जाएगा , फिर नयी टट्टी - पिशाब का गिरने और सुखाने का चक्र चालू होगा। हम क्या करें । इसकी आदत दल लो तो ही अच्छा है । धन्य वाद । जय हिंद , जय भारत । और इसी झटके से मेरी नींद खुली, पता चला ये तो एक ख्वाब था।
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