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Monday, December 22, 2008

मेरी डायरी के पन्नो से - नितिन एक नया आदर्श पुरूष

हर व्यक्ति हमेशा अपना कम से कम एक आदर्श पुरूष चुनता है, कभी कभी एक से ज्यादा भी आदर्श पुरूष हो सकते हैं, हम कभी खेलों में, कभी रहन सहन में ( किसी हीरो का आदर्श ) तो कभी अपने प्रोफेशन में , तो कभी अपने जीवन में , अपना आदर्श पुरूष चुनते हैं, और उसके जैसा बनने का प्रयास करते हैं । इसे आज कल व्यवसाय की भाषा में बेंच मार्किंग भी कहते हैं । मेरा यह मानना है कि यदि हमें यह मालूम हो कि हम कहाँ हैं , और हमें कहाँ पहुँचाना है , तो मंजिल पाना आसान होता है । हमें एक दिशा मिलती है , और , पता चलता है कितना सफर है । उससे हम यह तय कर पातें हैं कि हमें वह सफर तय करने के लिए क्या कुछ करना है । इसे गैप अनेलैसिस भी कहते हैं । मेरे कोलेज के दिनों में मैंने प्रभाकर मामा को अपना आदर्श पुरूष माना, क्योंकि उन दिनों मेरी नज़र में , वही हमारे परिवार के एक मात्र सदस्य थे, जिन्होंने अपने जीवन में कुछ हासिल किया था । वैसे मैं बिरला - टाटा - किर्लोस्कर को भी, अपना आदर्श पुरूष बना सकता था, पर मुझे हमेशा यही लगा कि सोचो उतना ही जितना हासिल कर पाओ । कहते हैं ना - तेंतें पाँव पसारिये - जेती लम्बी सोढ़ ॥ क्योंकि उतना पा लेने के बाद फिर से अपने माप दंड बदल सकते हैं। सीढी दर सीढी मंजिल तय करने में ही समझदारी है। कितने संकुचित विचार थे मेरे, कितनी छोटी उड़ान थी मेरी । खैर, मैंने भी अपनी समझ से गैप अनेलैसिस ( अन्तर का मूल्यांकन ) किया , और तय किया कि मामा यदि उनके ४० वे वर्ष तक पहुँचते पहुँचते इस मुकाम तक पहुंचे तो मैं अपने क्षेत्र में , रिटायर होने तक जरुर पहुंचूंगा । और वह हासिल भी किया , इसका मुझे गर्व भी है । पर , अब नई पीढी को एक और आदर्श पुरूष खोजना नही पड़ेगा । नितिन गाडगीळ युवा पीढी के नए आदर्श पुरूष बन गए हैं , उसने हमारे परिवार में एक नए आयाम को पाया है , और वह भी बिना किसी सिफारिश या पहुँच के । वह आज एक एम् एन सी कंपनी का मुख्य प्रभंध संचालक ( एम् डी ) है । उसने यह साबित कर दिखाया कि यदि जिद्द हो, सच्चाई हो , लगन हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है । उसने अम्रीका के नए राष्ट्रपति - श्री ओबामा के शब्दों को सार्थक किया कि " यस् वुई केन " और यह भी सिद्ध किया कि , शारुख खान के विज्ञापन की तरह , संतुष्ठ मत रहो , थोड़ा और विश करो , डिश करो , याने अपना दायरा बढाओ । तो आकाश भी छू सकते हो । मुझे अपने परिवार के सभी युवाओं से एक उम्मीद है , उनमे से कोई , अगले दशक / दो दशकों में, ( हाँ भाई हाँ । । सही सुना, क्योंकि कीर्तिमान इतने आसानी से नही टूटते ॥ ) एक और नया आयाम छुएगा, और उनकी अगली पीढी को एक और नया आदर्श पुरूष देगा । सो , एक्स्सेप्ट द चैलेंज - जन नेक्स्ट । । नर्डी नंदू । ।

3 comments:

Ameya said...

Nandu Mama

Very well written. ~ameya

Siddharth Moghe said...

अ पेन विल्ल आल्ल्वय्स बी माइतीयॆर थान थे स्वोर्ड !

ही म्हन फक्त महिति होति ! आज व्यग्तिगत रुपे कल्लि !

चल्लेन्गे अक्क्सेप्तेड !

अभिव्यक्ती said...

sidharth,

yes i agree.